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            Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai: बिहार में छठ पूजा के इतिहास को अभी जानने के लिए क्लिक करे

🌄 बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?(Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai) इसके पीछे का इतिहास क्या है जाने || Chhath Puja 2023 @Sonujieducation

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बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?(Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai: नमस्कार पाठकों स्वागत है आपका हमारे इस ब्लॉग पोस्ट में आज हम आपको बताने वाले है कि हर वर्ष हम हर्षोउल्लास के साथ छठ पूजा मनाते है। लेकिन हमारे मन मे हमेशा एक प्रश्न रहता है कि आखिरकार हम छठ पूजा मनाते क्यों है? और इसके पीछे का इतिहास क्या है। तो इसी प्रश्न का समाधान हेतु यह पोस्ट लिखा गया है आप अंत तक इस ब्लॉग पोस्ट को अंत तक पढ़ते ही आपके सवाल का जवाब मिल जाएगा। Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai

बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?(Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai)

Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai

छठ पूजा पूजा भारत के कई राज्यों में जैसे बिहार, यूपी, झारखंड में सबसे ज्यादा मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है जो कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन मनाया जाता है। छठ पूजा मुख्य तौर से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। इस दौरान व्रती 36 घंटों का व्रत रखते हैं। पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के दौरान हुई थी। रावण का वध कर जब प्रभु श्रीराम और माँ सीता वनवास से अयोध्या लौटे तब उन्होंने इस उपवास का पालन किया था। Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai

ऐसा भी मानते हैं की कर्ण जो सूर्य देव के पुत्र हैं, वह सूर्य भगवान के परम भक्ति और पानी में घंटों खड़े रहकर अर्घ्य देते थे। पांडवों के स्वास्थ और दीर्घायु के लिए द्रौपदी भी सूर्यदेव की उपासना करती थीं। कहते हैं कि उसकी इसी श्रद्धा के कारण पांडवों को अपना राज्य पाठ फिर से मिला था। इस पर्व से जुड़ी एक और पौराणिक कहानी प्रचलित है। राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को कोई भी संतान नही थे जिसके कारण वह बहुत दुखी थे। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai

जब उन्होंने यज्ञ किया तब महर्षि कश्यप ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को खीर खाने के लिए दी। कुछ समय पश्चात ही राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी कि वह बच्चा मृत अवस्था में पैदा हुआ।

राजा जब अपने पुत्र का मृत देह लेकर श्मशान गए और उन्होंने अपने प्राणों की भी आहुति देनी चाहिए तभी उनके सामने देवसेना यानी कि छठ देवी वहाँ प्रकट हुईं, जिन्हें षष्टी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने राजा को बताया कि अगर कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करें तो उस व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती हैं। देवी ने राजा को उनकी पूजा करने की सलाह दी। इस बात को सुनकर राजा ने देवी षष्टी की सच्चे मन से पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया।

राजा से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कहते हैं कि राजा ने जिस दिन वह पूजा की थी। वह कार्तिक शुक्ल की षष्टी का दिन था और उस दिन से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है। आज भी लोग इस व्रत को संतान प्राप्ति और अपने घरवालों की सुख, समृद्धि तथा दीर्घायु के लिए करती है। छठ पूजा के चार महत्वपूर्ण दिन होते हैं।Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai

पहला दिन: नहाए खाये

छठ पूजा का पहला दिन होता है नहाए खाये इस दिन सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है, जिसके बाद व्रती स्नान कर अपने आप को पवित्र करती है। स्नान करने के पश्चात वह शुद्ध और सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन चना दाल, लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाई जाती है। पकाए खाने को सबसे पहले व्रती खाते है और उसके बाद घर के बाकी सदस्य खाते हैं। छठ पूजा का दूसरा दिन है

दूसरा दिन: खरना

इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखती है जिसमें ना ही वह कुछ खाते है ना ही कुछ पी सकते हैं। शाम के समय गुड़ वाली खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है, जिसे रसिया, खीर कहती हैं और जिसे पूजा करने के बाद व्रती खाते हैं।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

ये तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है। इस पूरे दिन व्रती निर्जल व्रत रखते हैं। फिर शाम में वह नदी या तालाब के यहाँ इकट्ठा होकर डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं। जब व्रती घाट की तरफ अर्घ्य देने के लिए जा रही होती है तभी उनका बेटा या घर का कोई एक पुरुष एक बांस की बनी हुई टोकरी लेकर आगे चल रहा होता है जिसे बहँगी कहते हैं। बहँगी में फल, प्रसाद और पूजा की सामग्री रखी जाती है।

चौथे दिन: उषा अर्घ्य

छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूरज की पूजा करते हैं। व्रती और अन्य घर के लोग फिर एक बार नदी के किनारे इकट्ठा होते हैं और छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए उनके गीत गाते हैं। फिर अंत में व्रति प्रसाद और कच्चे दूध के शरबत का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं और इस तरह छठ पूजा की समाप्ति होती है।

निष्कर्ष

हमें आशा है आपको आज की ब्लॉग पोस्ट बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?(Bihar me Chhath Puja Kyon Manaya Jata Hai) को पढ़कर काफी अच्छा लगा होगा। इस जानकारी को अपने दोस्तों रिश्तेदारों के पास शेयर जरूर करें. धन्यवाद!

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